क्यों नही है बेतिया सभापति को क्वालिटी से कोई मतलब नहीं ??

क्यों नही है बेतिया सभापति को क्वालिटी से कोई मतलब नहीं ??

(मनीष कुमार /चम्पारण नीति)
बेतिया। नगर परिषद दिन – रात शहर के विकास के कार्यो में लगा दिखाई देता है । सोशल मीडिया हो या अखबार लगभग सभी में
सभापति के विकास का बात देखने को मिल ही जाता है। आखिर क्यों न हो एक लंबे समय के बाद नगर को एक ऐसी सभापति मिली है जो दिन रात नगर परिषद में सिर्फ और सिर्फ निर्माण के लिए तत्पर दिखती है ।चाहे क्वालिटी कितनी ही खराब हो ? ज्यादा से ज्यादा पैसा खर्चा करना और उसके क्वालिटी पर कोई कंट्रोल ना होना कही ना कही शक पैदा करता है । इसके पीछे वजह क्या है , ये आम जन अच्छी तरह समझते है ।
उदाहरण स्वरूप नगर में लगी लाइट के खर्चो पर नजर डाले तो आप बखूबी समझ सकते है कि इनके कार्यकाल में दो बार बिजली की लाइट लगी और हर बार लगाने वाले को एक निश्चित समय तक इसका रख – रखाव करना था, परंतु दोनों ही बार लाइट तो लगी पर ना ही गिनती पूरी है और ना ही रख रखाव होता है । नगर कि आधे से ज्यादा लाइट बन्द पड़ी है । आखिर क्यों नहीं इन कंपनियों को दिया पैसा सूद समेत सभापति द्वारा वापस लिया जाता है । इसमें कहीं ना कहीं तो घोलमाल है यह क्यूँ है यह सोचने पर मजबूर करता है कि ये रिश्ता क्या कहलाता है
अब एक नया खेल ये है कि आप कंप्लेन करे 48 घंटे में शिकायत दूर होगी । उसकी हालत यह है कि हफ़्तों तक सुनने वाला कोई नहीं है । क्योंकि लाइट लगाने वाले कंपनी पैसा लेने के बाद किसी की नहीं सुनती और सभापति तो क्वालिटी से कोई मतलब नहीं । खुद समझ सकते है।
बाकी और कहां कहां गड़बड़ी है।अगले पोस्ट में आप तक पहुंचाने का कष्ट करेंगे।

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