जंतर मंतर दिल्ली का धरना स्थल पुलिस के घेरे में-लोकतंत्र की दुर्गति का दंश

जंतर मंतर दिल्ली का धरना स्थल पुलिस के घेरे में आखिर लोकतंत्र की दुर्गति का दंश झेलते लोग कब तक मौन रहेंगे जानिये  प्रभुराज नारायण राव की कलम से

                   दिल्ली का जंतर मंतर मार्ग देश के प्रधानमंत्री के समक्ष अपनी मांगों को प्रदर्शन या धरना के माध्यम से पहुंचाने के एक स्थल के रुप में ख्याति प्राप्त है । यहां सभी प्रकार के समस्याओं से जूझने वाले लोग या संगठन अपनी आवाज बुलन्द कर समस्याओं से निजात पाने की अपेक्षा रखते हैं। आजादी के बाद से तकरीबन यह सिलसिला चलता रहा है। यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले , कला और संस्कृति की रक्षा करने की गुहार लगाने वाले देश के साहित्यकार , शिल्पकार , कलाकार , छायाकार , चित्रकार , अदाकार जैसे नामचीन व्यक्तित्व देश और समाज को समृद्धि दिलाने के लिए एकत्रित होते रहे हैं । जो विरोध के स्वर को मजबूती प्रदान करता रहा है।

            आज नरेन्द्र मोदी की शासन काल में मानो गुनहगारों का अड्डा बन गया है । क्योंकि फासीवादी शक्तियां ऊंची आवाज नहीं सुनते । वे मन की बात सुनाते हैं। दूसरों को सुनना पसन्द नहीं करते। वे झूठ को सच बनाने में माहिर होते । वे अपनी मर्जी के खिलाफ बोलने वालों को मिटा देते हैं ।

            यहीं कारण है कि जंतर मंतर दिल्ली का धरना स्थल निहायत ही संकीर्ण बन गया है । चारों तरफ से चाहर दिवारी से घिरे जंतर मंतर धरना स्थल में जाने के पहले पुलिस जांच के उपक्रमों से गजरना पड़ता है । सैकड़ों की संख्या में पुलिस की काफिला की निगाह में धरनार्थी किसी गंभीर घटना के आरोपी नजर आते हैं । दम घुटाऊ चाहर दिवारी के अन्दर सी सी टी वी कैमरे एक एक गतिविधियों का जायजा लेते दिखते हैं । चारों कोने पर बैठे चार संगठन के लोगों की आवाज चाहर दिवारी में ही कैद होकर रह जाती है । वे एक दूसरे को देखते या अपनी आवाज सुनाते रहते हैं । इन्हें दूसरा कोई देख ही नहीं सकता ।

         आखिर लोकतंत्र की दुर्गति का दंश झेलते लोग कब तक मौन रहेंगे , क्या अब विरोध की राजनीति को देशद्रोह का कानून बना दिया जाएगा।

यह सोचने की जरूरत है कि तानाशाहों की तरह विरोध करने वालों की आवाज दबाने का काम यह सरकार कर रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *