करनमेया काण्ड के पीड़ितों को पन्द्रह साल बाद न्याय की उम्मीद जगी

2008 के चर्चित करनमेया काण्ड मे उस समय के तत्कालीन जिलाधिकारी पर मामला चलाने के लिये न्यायालय में भटक रहे पीड़ितों को पन्द्रह साल बाद न्याय की उम्मीद जगी है। तत्कालीन जिलाधिकारी दिलीप कुमार पर आपराधिक मुकदमा चलाने की सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दे दिया है। लंबे समय से एक पक्ष इसके लिये न्यायालयों में भटक रहे थे । जिसके बाद पटना उच्च न्यायालय ने आदेश जारी किया और उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया सही। आपको बता दें कि करनमेया काण्ड चंपारण के चर्चित कांडों में से एक है और सुप्रिम कोर्ट के आदेश के बाद ऐसा प्रतीत  होता कि कहीं सच मे तो तत्कालीन अधिकारियों द्वारा कानून का मज़ाक तो नहीं बनाया गया।

2008 में पश्चिम चम्पारण जिला के जिलाधिकारी रहे दिलीप कुमार पर आपराधिक मुकदमा चलाने की सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दे दिया है । उक्त जानकारी देते हुए व्यवहार न्यायालय बेतिया के अधिवक्ता ब्रजराज श्रीवास्तव ने न्यायालय परिसर में स्थित पुस्तकालय भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहीं ।ब्रजराज श्रीवास्तव ने बताया कि बहुचर्चित करनमेया काण्ड से जुड़े मामले मे प० चम्पारण में उस समय पदस्थापित रहे जिला पदाधिकारी दिलीप कुमार के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय ने मुकदमा चलाये जाने की अनुमती प्रदान की है। बेतिया न्यायालय के अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकता श्री श्रीवास्तव द्वारा दायर परिवाद पत्र संख्या 2260/2008 को सर्वोच्च न्यायालय ने सही एवं दुरुस्त माना है। विदित हो कि उक्त अधिवक्ता सह पीडित ने वर्ष 2008 में मुख्य न्यायिक दण्डाधिकारी बेतिया के न्यायालय में जिलाधिकारी के विरुद्ध परिवाद दाखिल किया था। परिवादी का आरोप है कि जिलाधिकारी ने करनमेया महावीरी अखाड़ा से संबंधित विवाद में समाहरणालय कक्ष में शांति समिति की बैठक बुलाई थी । जिसमें दोनों समुदाय के लोग उपस्थित थे। जिलाधिकारी ने समझौता पत्र पर परिवादी को हस्ताक्षर करने का दबाव बनाया। परिवादी ने कहा कि यह सब तो ठिक है , परन्तु जिन लोगों ने हिन्दुओं के उपर आक्रमण कर दर्जनों लोगो को हथियार से जख्मी किया एवं मूर्ति क्षतिग्रस्त कर दिया। उनके विरुद्ध प्रशासन ने द्वारा प्राथमिकी दर्ज कर कार्यवाही क्यों नही की गई है। इतने पर जिलाधिकारी भड़क गये तथा गाली- गलौज करते हुए अलग रुम में परिवादी एवं विजय कश्यप को ले जाकर बैठा दिया। कुछ नौजवानों के सहयोग से परिवादी को गांधी का हत्यारा बोलकर एवं बताकर मारपीट किये। जब परिवादी ने जिलाधिकारी को धैर्य रखने की बात कही तो जिलाधिकारी आपा खो दिये एवं परिवादी को हथकडी लगवा दिये । नगर थाना के हाजत में बंद करवा दिये । अधिवक्ता ने कहा की हाजत में भी सिपाहियों से बंदूक के कुंदा से पिटायी की। मध्य रात्रि 12:00 बजे में नियम के विरुद्ध पीड़ित अधिवक्ता एवं विजय कश्यप को जेल भिजवाये। अधिवक्ता ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के यहाँ परिवाद दाखिल का बयान दर्ज कराया। परिवाद को 18 /9 /2008 को खारिज कर दिया गया । तब परिवादी ने जिला जज के न्यायालय में चुनौती दी । जिला जज ने भी परिवाद को रिवीजन हरित कर दिया । तब जाकर परिवादि ने मुख्य न्यायाधीश दंडाधिकारी एवं जिला जज के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय पटना का दरवाजा खटखटाया । पटना उच्च न्यायालय ने परिवादी को राहत देते हुए निचली अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए तत्कालीन जिलाधिकारी दिलीप कुमार पर मुकदमा चलाने का आदेश पारित किया था । जिलाधिकारी उच्च न्यायालय पटना के आदेश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय चले गये। 13 वर्षों के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 26 जुलाई 2023 को क्रिमिनल अपील 561 के बारे में जिला अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए पटना उच्च न्यायालय के आदेश को सही ठहराते हुए जिलाधिकारी दिलीप कुमार पर आपराधिक मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। इस मौके पर अधिवक्ता राजन कुमार चतुर्वेदी ,संतोष कुमार, अशोक शर्मा, अनिल श्रीवास्तव ,ओम प्रकाश वर्मा आदि मौजूद रहे।

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