आज़ादी का जश्न सबसे बडा जश्न, पर एक बार इस लेख को जरूर पढ़े

4600 की लूट करने वाले आजादी के दीवानों को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर चढ़ाया वही आज स्वतंत्र भारत में करोड़ों करोड़ों का लूट करने वाले राजनीति के हवामहल में सैर कर रहे हैं।

सुनील दुबे की कलम से….

              9 अगस्त 1925 की बात है, स्वतंत्रता के दीवाने ब्रिटिश हुकूमत से आमने-सामने की लड़ाई लड़ने की योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए गोला बारूद हथियार खरीदने की उद्देश्य से कुछ क्रांति वीरों ने अपनी पूर्व में बनाई गई योजनाओं को मूर्त रूप देने का दिन निर्धारित किया । योजना के अनुसार, आंदोलनकारियो को यह पक्की खबर मिली थी, कि ट्रेन से सरकारी खजाना जाएगी । उस खजाने को लूटने की बनाई गई । योजना यह थी कि ट्रेन से जाने वाली खजाने की राशि को लूट लेना है । यह भी योजना पहले ही बन चुकी थी कि, लूटी गई राशि से अंग्रेजों से आमले सामने की लड़ाई लड़ने के लिए हथियारों की व्यवस्था की जाएगी । बारूद खरीद कर हाथ गोला बम बनाया जाएगा एल लूट की अगवाई करने वाले में राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खान सहित दर्जनाधिक गरम दल के क्रांतिकारी थे । क्रांतिकारियों ने 4600 रुपए की लूट ट्रेन से जा रही सरकारी खजाने की की । इस घटना को इतिहास के पन्नों में काकोरी कांड से जाना जाता है । अंग्रेजी हुकूमत के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी । अंग्रेजी फौज ने इस कांड में शामिल 16 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया । जिसमें प्रमुख थे राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी अशफाक उल्ला खान । अंग्रेज़ी हुकूमत की न्यायपालिका ने बचाव पक्ष की कुछ नहीं सुनी । उसने सुनी तो सिर्फ लूट कांड की चार्ज शीट की । हिंदुस्तान रिपब्लिक संगठन के क्रांतिकारी नेताओं ने इस डकैती की योजना में जर्मनी के बने चार माउजर पिस्टल को उपयोग में लाया गया था । इसकी विशेषता यह थी कि इसके बट के पीछे लकड़ी का एक और कुंदा जोड़कर बड़ा हथियार बनाया जा सकता था । इन क्रांतिविरो ने ट्रेन से सिर्फ बैग में रखी गई सरकारी राशि की ही लूट की । अन्य कीमती वस्तुओं को छुआ तक नहीं । रामप्रसाद बिस्मिल सहित सबको गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया । उस करावास काल में ही भारत के लाल बिस्मिल जी ने देश की आजादी के लिए अपनी क्रांतिकारी भावना को कागज के टुकड़ों पर यू इस प्रकार उतारा।

“मेरा रंग दे बसंती चोला —
हां मेरा रंग दो बसंती चोला —
इसी रंग में रंग के शिवा ने मां का बंधन खोला —
यही रंग हल्दीघाटी मे था प्रताप ने गोल
नव बसंत में भारत के हित में वीरों का यह टोला
मस्ती में पहन कर निकाला यह बसंती चोला
मेरा रंग दे बसंती चोला ‘
रामप्रसाद बिस्मिल की यह रचना क्रांतिकारियो में और भी जोश भरने लगी । अंग्रेजों के लिए उनके द्वारा की गई यह रचना बम गोला बारूद से कम नही था । जिसके लिए उन्हें काफी प्रताड़ित भी किया गया । अंग्रेज के न्यायालय में अंतिम सुनवाई के समय बिसमिल जी हंसते-हंसते अपनी इस रचना को गुनगुना गए थे । कोर्ट बचाव में कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था । और अंतत उसने पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खान तथा रोशन ठाकुर को सजा ए मौत तथा अन्य को काले पानी की सजा तो कुछ को स श्रम चार वर्ष की कठोर सजा सुनाया । पंडित बिस्मिल जी की रचना इतना है लोकप्रिय हुआ की आजादी के दीवानों ने हर वीरक्रम पर उसे गया । भगत सिंह ने इसे ही गाते गाते फांसी को गले लगाया । चंद्रशेखर आजाद की जब भी उनका हाथ मूछे येथने के लिए उठाती तो अन्यआस ही उनके मुंह से मेरा रंग दे बसंती चोला निकलने लगता l
भारत आजाद हो गया । आज के दिन देश की आजादी के 78 वें वर्षगांठ पर हर जगह तिरंगा लहराया जाएगा । लेकिन वह तिरंगालहरते हुए यह जरूर कहेगा कि, 4600 के लिए मेरे सपूत फांसी पर लटका दिए गए । कठोर सजाये दो गईl वही आज मेरी आजादी के आंचल में मेरे ही वतन के लोगों ने करोड़ों करोड़ों का घोटाला करके राजनीति की हवा महल में सैर कर रहे है । यहां की न्यायपालिका जांच पड़ताल तारीख पर तारीख देती जा रही है और वे इस बीच अपने बचाव के रास्ते ढूंढने में लगे हुए हैं । भारत माता कह। रही है । क्या मैं 1925 में भारत की माता नहीं थी जो उन वीरों को मैं नहीं बचा सकी । आज मेरे ही कोख से पैदा हुए मेरे ही वतन को लूट करते हुए सैर कर रहे है । मेरी न्यायपालिका कितना दिन इंतजार करती रहेगी । दिन बीतते बीतते बीतते अंत में सब कुछ बदल जाता है । क्या यही है मेरी स्वतंत्रता ??

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *