सर्द मौसम में पानी पीने से परहेज न करें अन्यथा कई बीमारियां आपको सकती हैं

स्वास्थ्य पर सुनील दुबे की कलम से

प्रायः सर्दियों के मौसम में पानी पीने से लोग परहेज करने लगते हैं। वही व्यक्ति जो गर्मियों के मौसम में पर्याप्त मात्रा में पानी पीता था, वहीं व्यक्ति सर्दियों के मौसम में ठंडी के कारण पानी पीने में धीरे धीरे कमी करने लगता हैं। उसे इस बात का अंदाजा ही नहीं रहता कि पानी कम पीने के कारण कई घातक बीमारियां उसके शरीर में तैयार होने लगती है, जो बाद में उनके लिए परेशानी का शबब बन जाती हैं। पानी कम पीने तथा तले भुने खाने से सबसे पहले मनुष्य के पेट पर प्रभाव पड़ता हैं। पाचन क्रिया धीर धीरे प्रभावित होने लगती हैं। होता यह हैं कि आम आदमी जो पहले पानी ग्रहण करता था वह जाड़े के कारण ठंडे पानी को पीने में धीरे धीरे कमी करने लगता हैं। शरीर को जितनी मात्र में पानी चाहिए, उसकी कमी होने पर पाचन क्रिया प्रभावित होने लगती हैं। दुसरा प्रभाव मूत्राशय पर पड़ता हैं, पेशाब में जलन की शिकायत प्रारंभ हो जाती हैं। तीसरी शिकायत सही ढंग से शरीर से मल निष्कासन नहीं होने की शिकायत होने लगती हैं और चौथा सबसे बड़ा प्रभाव किडनी पर भी पड़ना शुरू हो जाता हैं। किडनी (गुर्दा) के अंदर पथरी के सृजन होने की संभावना बढ़ जाती हैं।

               पश्चिम चंपारण के प्रसिद्ध चिकित्सक, बेतिया राजकीय अस्पताल (सदर हॉस्पिटल) के पूर्व अधीक्षक एवं कोतवाली चौक स्थित तिवारी श्यामा हॉस्पिटल के संचालक डा. प्रमोद तिवारी का कहना हैं कि ठंडी के दिनों में बहुत लोगों को रात्रि में पेशाब की ज्यादा अनुभूति होती हैं। बार बार बिस्तर से उठना न पड़े इस कारण भी पानी कम पीते हैं और बहुत लोग तो पेशाब की अनुभूति होने पर भी बिस्तर छोड़ना नहीं चाहते हैं, जिस कारण मूत्राशय प्रभावित होता हैं और इसका असर गुर्दे पर भी पड़ता हैं।  जिस कारण सही रूप में पेशाब का नहीं होना, जलन होना जैसी बीमारी प्रलक्षित होने लगती हैं l इसका दुष्प्रभाव किडनी पर भी पड़ना स्वभाविक है। डा. तिवारी के अनुसार पानी पीने में कोताही नहीं करना चाहिए। पानी को हल्का गर्म कर पीते रहना चाहिए।

                   उत्तर प्रदेश के लखनऊ के सुप्रसिद्ध लिवर स्पेशलिस्ट डा. अनुराग मिश्रा के अनुसार सर्द मौसम में लोग गरम गरम तली भूनी बेयजन खाने में रुचि ज्यादा ही लेने लगते हैं। संतुलित खाना खाने के प्रति नियंत्रणहीन हो जाते हैं। नियंत्रता नहीं रहने के कारण बदहजमी के शिकार होने लगते हैं। नतीजतन गैस, बदहजमी जैसे बीमारी के शिकार हो जाते हैं। पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पीने से पाचन क्रिया प्रभावित हो जाती हैं, रक्त चाप भी प्रभावित होता हैं। ऐसे में चाहिए कि शरीर में मात्रानुकुल पानी रखने के लिए, पानी पीने में कोताही न बरते।

                      दिल्ली  वेव सिटी (गाजियाबाद) की, प्रसिद्ध मार्ग पर लागतार बढ़ती रहने वाली होमियोपैथी चिकित्सक डा. रीमा कुमारी का कहना हैं कि ठंड के मौसम में न तो पानी पीने में कोताही बरतनी चाहिए और न ही मौसमी फल और मौसमी सब्जी खाने में। उनके अनुसार बहुत से लोग गर्म या सुसुम पानी पीने से कतराते हैं तथा गर्मियों के मौसम के अपेक्षा ठंड मौसम में कम पानी पीते हैं। प्रायः सभी लोग जानते हैं कि शरीर में 70 प्रतिशत पानी होता हैं। शरीर में पानी का होना बहुत आवश्यक हैं। शरीर के रक्त संचालन क्रिया में पानी की अहम भूमिका होती हैं। पानी कम पीने के कारण शरीर के अंदर की संग्रहित पानी का ह्रास होने लगता हैं। जिस कारण पाचन तंत्र प्रभावित होता हैं। रक्तचाप का संतुलन बिगड़ने लगता हैं। ठंडी में बहुत से लोगों का खान पान भी असंतुलित हो जाता हैं। शरीर में गर्मी देनेवाले खाद्यपदार्थ के नाम पर मसालेदार तैलीय भोजन ज्यादा करने लगते हैं। यही नहीं मौसम के प्रभाव के कारण वे मात्रा से अधिक भोजन भी लेने लगते हैं, जिसका अंदाजा भी उन्हें नहीं होता, नतीजतन वे बीमार होने लगते हैं। डीहाइड्रेशन के शिकार होने लगते हैं। मलमार्ग भी प्रभावित होने लगता हैं। सुपाच्यता की कमी होजती हैं। जिससे पाइल्स (बवासीर) की उत्पति होने के आसार बढ़ जाते हैं या जो इससे ग्रसित हैं, उनकी यह बीमारी बढ़ने की संभावना ज्यादा हो जाती हैं। गुर्दा भी प्रभावित होने की स्थिति आ सकती हैं। सर्द मौसम में पानी पीने से परहेज नहीं करना चाहिए। पानी या तो हल्का गर्म या ताजा पानी पीना अच्छा होता हैं। मौसमी फल तथा मौसमी सब्जी अन्न से ज्यादा खाना चाहिए। सब्जियों में मौसमी भथूहा, तोरी सरसों, पलक का साग , सब्जियों में बंध गोभी, फुल एवं शलगम गोभी, मूली, हरा धनिया पता, मेथी पता, सोया, चनसूर, आदि हरे सब्जियों के सेवन से आतीय बीमारी होने की संभावना कम रहती हैं।

                            गवर्मेंट चाइल्ड हेल्थ केयर सेंटर, कल्याण (मुंबई) की चिकित्सापदाधिकारी डा. पल्लवी कुमारी का मानना हैं कि, हर आदमी को अपने स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए। खास कर मौसम के हिसाब से तो और भी ज्यादा। गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में खाने पीने के प्रति ज्यादा सजगता जरूरी होता हैं। बच्चे ज्यादा चटपटी खान पसंद करते हैं। बड़ों की भी यही स्थिति रहती हैं। ज्यादा चटपटी खानों से बच्चों सहित अपनो को भी दूर रखना चाहिए। नॉनवेज खाने वाले यह समझते हैं कि बराबर नॉनवेज खाने से शरीर में स्फूर्ति और गर्मी बनी रहती हैं। जबकि ऐसी बात नहीं हैं। बराबर ऐसे लंच या डिनर लेने से पेट में कॉम्प्लिकेशन होने की संभावना रहती हैं। इस मौसम में संतुलित आहार लेना चाहिए। हरी सब्ज़ियां, मौसमी फल का सेवन करना चाहिए। मौसमी फलों में संतरा, गाजर, सेव, पपीता, केला आदि का सेवन करने से शरीर में पानी की कमी को पूरा करने में सहायक होता हैं। हरी सब्जी के साथ आंवला, पुदीना, धनियापता हरे लहसून की चटनी काफी लाभदायक होता हैं। वही कद्दू सलाद, कद्दू जूस (एक कप) भी काफी लाभदायक होता हैं। पर्याप्त मात्रा में जल ग्रहण करना भी अनिवार्य होता हैं। अनियंत्रित भोजन करने से शरीर का अंदरूनी प्रक्रिया प्रभावित होती हैं। पेट में अम्लता बढ़ने लगती हैं। जिससे रक्त चाप बढ़ने -घटने की संभावना रहती, एसिडिटी होने तथा यहां तक की हार्ट की भी बीमारी से आदमी ग्रसित हो सकता हैं। ऐसे में भोजन में क्षारीय आहार लेते रहना श्रेयस्कर होता हैं।

                   बेतिया की डा. शिखा पांडेय के अनुसार जाड़े में अधिकांश लोगों का भोजन असंतुलित हो जाता हैं। इसका मुख्य कारण दिन का छोटा होना तथा रात का बड़ा होना भी है। लोगो का नाश्ता खाना के समय में अंतर होने लगता हैं। जो आदमी पहले आठ से दस बारह लीटर पानी पिता था, उसके पानी पीने में कमी होने लगती हैं। बहुत से लोग तो रात के सोने के पहले तक मुश्किलन चार से छह लीटर ही पानी पी पता हैं। कभी ज्यादा खा लेता हैं तो कभी कम। इस कारण उसके अंदर नाना प्रकार की आकस्मिक बीमारियां पैदा हो जाती, जिनमें कई जानलेवा भी होती हैं। इसलिए नियंत्रित भाव में पौष्टिक भोजन और पूर्ण मात्रा में पानी ग्रहण करना चाहिए।

               बेतिया के शारदा मेटरनिटी एंड कार्डियो केयर सेंटर के संचालक एवं हार्ट स्पेशलिस्ट डा. रविराज दुबे के अनुसार सर्द मौसम में लोगों को जंक फूड खाना, मसालेदार भोजन पर ज्यादा रूचि बढ़ती है, जिससे सिर्फ लिबर डिजीज की ही संभावना नहीं रहती बल्कि दिल की बीमारी भी हो सकती हैं। उसमें भी दिल दौरे की आनुवांशिकीय परिवार या व्यक्ति अगर हैं तो उसके लिए और भी घातक स्थिति हो सकती हैं। डा. दुबे के अनुसार अनुसंधानों में यह बात आ चुकी हैं कि दिल के दौरे की बीमारी का एक कारण आनुवांशिकी भी हैं। ठंड में वैसे भी रक्त चाप अनियंत्रित हो जाता हैं। जो दिल दौरे का कारण बन सकता हैं। ऐसे में शरीर में जलीय संग्रहण तथा संतुलित और पौष्टिक आहार के प्रति सचेष्ट रहना आवश्यक हैं।

                 बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मूल निवासी एवं गुजरात के राजकोट में स्थाई रूप से रहने वाले बिपिन शाही, जो स्वास्थ्य संरक्षण एवं योगविद्या के अच्छे ज्ञाता हैं। गुजरात के राजकोट सहित अन्य जगहों पर उनकी काफी पूछ हैं, का कहना हैं,कि प्रारंभकाल की पढ़ाई से लेकर वर्तमान के आधुनिक काल में भी छोटे से लेकर बड़े क्लासों में यह चर्चा होती रही हैं और आगे भी होती रहेगी कि “जल ही जीवन हैं”। इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य के स्वस्थ जीवन के लिए शरीर के मात्रनुकूल स्वच्छ जल की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सरकार ने कई अनुसंधानों के निष्कर्ष के उपरांत जन जागृति हेतू एक अभियान प्रारंभ किया है, “जल जीवन हरियाली” जो कम बेस देश के सभी राज्यों में संचालित हैं। तात्पर्य यह हैं कि अनुसंधानों में पाया गया है कि पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पीने, स्वच्छ जल का सेवन नहीं करने, स्वच्छ वातावरण नहीं रहने से आदमी ज्यादा बीमार हो रहे हैं l उन्होंने अनुभवों के आधार पर बताया कि खास कर जाड़े में लोग अत्यधिक मात्रा में खा लेते हैं। पानी कम पीते हैं, जिससे गैस, बदहजमी, खट्टा मीठा ढकार , माथे में दर्द , बल्ड प्रेसर का हई या लो होना, मूत्राशय में गड़बड़ी होना, मूत्राशय थैली में सूजन हो जाना, चाह कर भी पेशाब सही नहीं होना जैसी अनेकों बीमारियां होने की स्थिति बन जाती हैं। श्री शाही के अनुसार तीन अभ्यास को जीवन में उतार लिया जाय किसी भी मौसम में आपका अपना शरीर बहुत हद तक स्वस्थ रहेगा। एक पानी किसी भी मौसम में खूब पीए, दूसरा भूख से कम नार्मल पौष्टिक भोजन ले और तीसरा यह कि सुबह शाम अपने घर में, छत पर, द्वार पर या कही भी मात्र दस बार आप ऐसे छलांग लगावे जैसे किसी पेड़ पर आम या अमरूद फला है जो आपके हाथ उठाने के पहुंच से उपर है और उसे तोड़ने के लिए आप ऊपर की तरफ हाथ उठा कर छलांग लगा रहे हो। अगर यह तीन बातों का कोई भी गांठ कर ले तो उसके जीवन में हरियाली ही हरियाली रहेगी।

                 बेतिया के मित्रा चौक के समीप अपना निजी क्लिनिक संचालित करने वाले फिजिशियन एवं सुगर (मधुमेह) विशेषज्ञ डा. राजेश श्रीवास्तव साफ साफ शब्दों में कहते हैं कि, भोजन के प्रति ज्यादा जिज्ञासु होना, अपने जीवन के लिए खतरा मोल लेने जैसा है। गर्मी और जड़ा के समय हर व्यक्ति को अपने आहार के प्रति सजग रहना चाहिए। विज्ञान के अनुसंधानों से स्पष्ट हो चुका हैं, कि खान पान की गड़बड़ी से ही शरीर में 70 से 80 प्रतिशत बीमारियां होती हैं। जिसका स्पष्ट प्रमाण शुगर की बीमारी ह सभी चिकित्सा पद्धतियां कहती हैं कि दिन में इस प्रकार से भोजन करे कि थोडा भूख का एहसास हो। रात में भूख के मुकाबले 20 प्रतिशत कम भोजन करे। भोजन नाश्ता करने का समय सीमा भी हो। सिर्फ भोजन से ही पेट न भरे, पानी से भी पेट भरे। अन्यथा कई बीमारियां खुद ब खुद आमंत्रित होने लगेंगी।

                     पश्चिम चंपारण जिले के प्रसिद्ध शिशु रोग विशेषज्ञ डा. दिनेश राय के अनुसार अबोध बच्चों को मात्रा क्रम में स्वच्छ जल और सुपाच्य आहार देना चाहिए। आजकल प्रचलन में आए हुए पैकेट बंद चटपटी आहारों से जितना ही दूर रखेंगे उतना ही वे निरोग रहेंगे। साल भर के बाद के बच्चों में पानी पीने का आदत डालना चाहिए। ताकि वह खुद पानी के प्रति आकर्षित हो। सिर्फ बच्चे ही नहीं हर व्यक्ति को पर्याप्त जल और पर्याप्त सुपाच्य पौष्टिक भोजन लेना चाहिए। देहरादून की डा. अंजली सिन्हा साफ साफ कहती हैं कि सर्द मौसम में खासकर महिलाएं अपने शरीर में बीमारी का बढ़ावा कर लेती हैं। समय पर न तो नाश्ता करती हैं और न ही खाना खाती हैं ,जिस कारण पानी भी नहीं पीती हैं l घरेलू महिलाएं परिवार के अन्य सदस्यों को नाश्ता,खाना खिलाने में अपने को ही भूल जाती, जिस कारण उनके शरीर में कई बीमारियां पैदा होने लगती हैं। खासकर गैस , गैस के कारण पेडू में दर्द, मूत्राशय में सूजन, हाथ पैर में जलन आदि बीमारियां होने लगती हैं। डा. अंजली जो डा. इलू से भी जानी जाती हैं, कहती हैं, प्रायः महिलाएं पानी कम पीती हैं, जिससे उनमें थायराइड जैसी बीमारी होती हैं और इस कारण अन्य बीमारियां पैदा होती हैं। एक के कारण अनेक बीमारियां वे खुद को पाल लेती हैं l उन्हें चाहिए कि ताजा पानी कुछ समय के अंतराल पर लेती रहे तथा सर्दियों में रात्रि समय थोडा गुड , खाना खाने के बाद खाया करे , बहुत ही लाभकारी होगा। 

                  राजस्थान में जयपुर के डा. प्रशान्त कुमार यह कहते हैं कि शाम के नाश्ता के बाद थोड़ा थोड़ा पानी पीते रहना चाहिए l पानी से पेट भरा रहने के कारण,स्वाभाविक ही रात्रि में वह आदमी कुछ कम खाना खाएगा। सोने के पूर्व जब वह व्यक्ति वाशरूम होकर वापस आएगा तो उसका पेट हल्का महसूस होगा और उसे निंद भी मजे की आएगी।

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