नगर निगम में गुणवत्ता की बातें सिर्फ जनता को दिखाने के लिए

         नगर निगम के अधिकांश कार्यों में गुणवत्ता की कमी देखी जाती है परंतु किसी भी जनप्रतिनिधि या अधिकारी द्वारा उस पर उचित कार्रवाई नहीं की जाती क्योंकि इस लूट में कहीं ना कहीं अधिकांश के भागीदार होने की संभावना बनी रहती है।

हालांकि महापौर से लेकर अधिकारी तक कार्यों में गुणवत्ता बनाये रखने की बात करते हैं लेकिन वास्तविक तौर पर देखा जाए तो सड़क को और नालियों में निर्माण की जो स्थिति है उसमें किसी भी तरह यह नहीं माना जा सकता की गुणवत्ता बरकरार रहती है। समय समय पर नगर निगम के पार्षद, महापौर या अन्य लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं लेकिन वास्तविक रूप से यह भ्रष्टाचार की बातें तब आज सामने आती हैं जब किसी विशेष द्वारा यह कार्य कराया जाता है।

            जनता द्वारा अक्सर देखा जाता है कि जब महापौर द्वारा भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जाता है तो पार्षद और जब पार्षदों द्वारा भ्रष्टाचार का आरोप लगाया जाता है तो महापौर को यह सुनाई नहीं देता है।

          इन दोनों के आरोप प्रत्यारोप के बीच जनता के पैसे की लूट होती रहती है और जनता दोनों की विवाद को देखकर यह तय नहीं कर पाती है कि किसके द्वारा सही बोला जा रहा है और किसके द्वारा झूठ। और अगर किसी पार्षद या किसी भी व्यक्ति द्वारा भ्रष्टाचार पर सख्त कदम उठाने की कोशिश की जाती है तो उसे झूठे केस में फंसा दिया जाता है जैसा कि हम उपमहापौर पुत्र के मामले में पहले भी देख चुके हैं।

             उपमहापौर द्वारा दो वर्ष पूर्व ही संवेदको द्वारा लूट की बात बताते हुये सभी जगहों पर वसूली जाने वाली राशि का बोर्ड लगाने की बात को प्रमुखता से उठाया गया था परन्तु इसका पालन नगर निगम द्वारा अभी तक नहीं कराया गया। जिससे साफ अंदाजा लगता है की निगम का कही ना कही संवेदको से मिलीभगत है । 

           अगर सशक्त कमिटी के वार्ड मे अगर बनाई गई सड़क ऑर्डर एक महीने में खराब हो जाती है तो उसकी सूचना के बाद भी कोई जांच नहीं होती ऐसे एक नई कई मामले जनता की नजर में आते हैं लेकिन जनता चुप रहती है।

              अभी वर्तमान में मार्च लूट के नाम पर महापौर ने कार्य में तेजी लाने का आदेश दिया ताकि मार्च से पहले तेजी से सारे काम का निपटारा किया जाए। लेकिन इन कार्यों में बड़ी अनियमित देती जा रही है सवाल यह है कि इन अनियमताओं की जांच करेगा कौन जो जांच करने वाले अधिकारी हैं वह भी खुद शक के दायरे में रहते हैं।

                   बरहाल बात जो भी हो वास्तविकता यही है कि जनता इस भरस्टाचार पर चुप बैठी है और जनता के पैसे का विकास कार्य में उपयोग तो किया जा रहा है परंतु उसमें गुणवत्ता का घोर अभाव है और जनप्रतिनिधियों द्वारा सिर्फ गुणवत्ता की बातें की जा रही है ।

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