पिछले 10 सालों से सत्ता में काबीज आप पार्टी की चुनावी हार से भले ही भाजपा खुश है परंतु इसकी बड़ी वजह कांग्रेस है क्यूँकि कांग्रेस की चुनावी रणनीति से पहले ही दिखाई देने लगा था की कांग्रेस चुनाव जितने से ज्यादा आप को सत्ता से बाहर देखना चाहती है।
इस बारे मे मुद्दा जनता का चैनल ने पिछले 21 जनवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव पर, वरिष्ठ पत्रकार, स्तम्भकार एवं लेखक सुनील दुबे की एक खास विश्लेषनात्मक खबर “कांग्रेस की चुनावी रणनीति ने केजरीवाल की मुश्किलों को बढ़ा दिया ” शीर्षक से प्रसारित किया था। श्री दुबे ने अपने विश्लेषण खबर के अंत में सार तत्व उल्लेखित करते हुये लिखा था, कि अगर खयेंगे नहीं तो खाने (आप पार्टी को ) भी नहीं देंगे। जो इस विधानसभा चुनाव में लगभग सटीक साबित हुआ हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम में भाजपा को सत्ताशीन करने में आप पार्टी के उपर लगे भ्रष्टाचार एवं शराब घोटाला के आरोप तथा कांग्रेस की घेराबंदी ज्यादा अहमकारी रही हैं।
पुन: सुनील दुबे की कलम से
दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम पर पुरे देश की नजर टिकी हुयी थी। कारण यह था, कि अरविन्द केजरीवाल जैसे बड़बोलू नेता का अपने ही शासन काल में नाटकीय अंदाज में कई राजनितिक घटनाक्रम की स्थिति उतपन्न कर खुद को हाई लाइटेड करने की जी तोड़ कोशिश रही हैं। जैसे भ्रष्टाचार तथा शराब घोटाला का मामला उजागर हुआ तो, केजरीवाल ने विपक्ष के दलों से ज्यादा खुद से आरोप को निराधार बताने में हल्ला मचाया। वही जेल जाने के प्रकरण को भी खुद से भी काफी हाइलाइटेड किया। जेल के अंदर से शासन करेंगे को भी खुब राजनीतिक रंग चढ़ाया। अपने को मुख्यमंत्री के पद से हटने को भी ईमानदारी के सबूत देने के रूप में जरूरत से ज्यादा रंग चढ़ाया। केजरीवाल के ये सब के सब दिखावा, राजनीतिक स्टंट को वहां की जनता समझ रही थी, कि केजरीवाल की यह राजनीतिक नौटंकी हैं। वही दुसरी तरफ भाजपा बहुत पहले से ही आप की सरकार को धाराशायी करने के लिए लगी हुयी थी। उसकी भ्रस्टाचार की कहानियों का पोल सीरियल बाई सीरियल खोल रही थी। जिसमें केजरीवाल सरकार लगातार घिरती जा रही थी। वही चुनाव काल में कांग्रेस बहुत बड़े हमलावर के रूप में “आप ” के सामने आ गयी, जो पहले भाजपा से वह झेल ही रही थी अब उसके सामने कांग्रेस भी आ गयी। यू समझिए कांग्रेस “आप “से काफी गुस्से में थी। उसने अपनी राज्यों के चुनावी विश्लेषण में पाया था, कि हरियाणा एवं गुजरात के विधानसभा चुनावों में “आप “के कारण उसे काफी नुकसान ही नहीं बल्कि फ़जीहत भी झेलना पड़ा हैं। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में दिल्ली के सदन से कांग्रेस बाहर रही। इस चुनाव के पूर्व वह “आप “के प्रति इतना हमलावर वह नहीं रही जितना की इस बार वह थी। लगता था, कि कांग्रेस ने ठान लिया हैं कि, अगर विधानसभा में अपनी वजूद नहीं बना सके तो तुझे भी सत्ता सुख भोगने नहीं देंगे। यानि अगर “खायेंगे नहीं तो खाने भी नहीं देंगे”। दुसरी तरफ भजपा की कमरकस भिड़ाई, भजपा नेताओं की जबरदस्त की अपने पक्ष में सफाई -दुहाई ने केजरीवाल के बाजी को पलट दीया।
ऐसी बात नहीं हैं, कि “आप “ने जोर आजमाईश नहीं किया, खुब किया लेकिन मतदाताओं में उसके प्रति उदासीनता रही हैं। कही कही तो संघर्ष काफी रोचक रहा हैं l जैसे महरौली में भजपा मात्र 1782, मालवीयनगर में 2131,जंगपुरा में 675, राजेन्द्रनगर में 1231,तिमारपुर में 1168 मत से मात्र जीत पायी हैं। ऐसे कसमस में कांग्रेस की नकाबन्दी ही हैं कि ऐसे जगहों पर “आप “के नाक में दम हो गया। संगम विहार और त्रिलोकपुरी जैसे विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की जीत का अंतर मात्र तीन सौ का रहा हैं। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव के मत प्राप्ति के प्रतिशत के मुकाबले इस बार लगभग डेढ़ प्रतिशत ज्यादा मत हाशिल किया हैं। पिछले चुनाव में उसे 5 प्रतिशत मत प्राप्त हुआ था वही इस बार 6.34 प्रतिशत मत मिला। लगभग डेढ़ प्रतिशत की बढ़त ने केजरीवाल के सदस्य संख्या के बढ़त को रोकने में काफी हद तक कारण हुआ हैं लिए
सारांश यह रहा की भाजपा की प्रचंड जीत मे कही ना कही कांग्रेस का भी हाथ रहा है। उसकी रणनीति आप को सत्ता से बाहर रख अपने वजूद को बचाने की थी जिसमे वो सफल रही।