जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पर्यटन आधारित रोजगार को प्रभावित तो कर ही गया, साथ ही मुख्यमंत्री उमर अब्दुला तथा उनकी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस पर भी सवालिया निशान लगा दिया हैं।
पहलगाम की आतंकी हमले से जम्मू कश्मीर पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर अपना विचार व्यक्त कर रहे हैं स्तम्भकार, लेखक एवं वरिष्ठ त्रकार सुनील दुबे
लश्कर ऐ तैयबा, जो एक आतंकी संगठन हैं, जिसका तार सीधे सीधे पाकिस्तान से जुडा हुआ हैं, या कह सकते है की सिर्फ तार ही नहीं जुडा हुआ हैं, बल्कि उसका पोषित संगठन हैं। उसके द्वारा किया गया पहलगाम पर हमला कोई पहला आतंकी हमला नहीं हैं। जम्मू कश्मीर जो देशी विदेशी पर्यटकों के लिए मनभावन आकर्षण का केंद्र भी हैं। साथ ही जम्मूकश्मीर की आर्थिक संरचना एवं रोजगार में पर्यटनीय दृष्टिकोण से आकलन किया जाय तो उसकी भगीदारी पचास प्रतिशत से अधिक की हैं।
रोजी रोजगार और हर व्यक्ति के पेट की भूख मिटाने में पर्यटकों की भागीदारी हैं। जिसमें कही से भी हिन्दू, मुस्लिम की अलग अलग भागीदारी नहीं हैं। पहलगाम में अंतकियों ने धर्म -जाति पूछ कर या अनुमान -अंजाद पर हिन्दुओं को चून चून कर मारा। देखने में तो यह जरूर हैं कि हिन्दुओं को मारा गया लेकिन वास्तविकता यह हैं कि मुसलमानों को उन आतंकियों ने भविष्य के कई वर्षो तक के लिए घायल कर दिया। पर्यटक आधारित रोजगार को उनके हाथ से छिन कर भिख मागने के लिए हाथ में कटोरा लेने के लिए मजबूर कर दिया हैं। यह कौन नहीं जनता कि जम्मू कश्मीर चावल दाल, तिलहन की खेती नहीं करता। सेव, किसमिस, अखरोट की खेती छोटे तबके के लोग नहीं करते बल्कि वह बड़े बड़े मलकियत वाले की हैं। शेष में से आधे से अधिक पर्यटक आधारित रोजी -व्यवसाय पर ही निर्भर हैं। जिनमें 80 प्रतिशत से अधिक की संख्या मुसलमानों की ही है। लशकर ऐ तैयाब ने मारा तो हिन्दुओं को लेकिन उसने बगैर गोली मारे जबरदस्त ढंग से मुसलमानों को भी मार गिराया। भारत के कोने कोने से अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए बहुतायत संख्या में मुसलमान जम्मूकश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों में जाते हैं। जिनमें अधिकांश गैराज का काम करने वाले, वादियों से फूल तोड़ने, फ्लावर बुके तैयार करने, बावर्ची, पेंटर, कारपेंटर आदि के काम करने वाले हैं जो पर्यटन आधारित ही हैं। उनपर भी यह हमला हैं। इस घटना के बाद से पर्यटकों का पैर जम्मू कश्मीर के तरफ जाने से निश्चित ही रुकने लगेगा।
दुःखद पहलू यह भी हैं कि आतंकियों ने बेरहमी का हद पार कर दिया। प्रताड़नावों की कड़ी दर कड़ी खड़ा कर दिया। छोटे छोटे बच्चों पर भी निशाना साधा। बहुत बड़ा सवाल जम्मूकश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला तथा सताधारी दल नेशनल कॉन्फ्रेंस पर भी खड़ा हुआ हैं। क्या अब्दुल्ला सरकार की जिम्मेदारी अपने राज्य के लिए नहीं हैं? अपने राज्य की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी उनपर नहीं हैं? स्टेट इटेलिजेंस क्या सोया हुआ था, कि उसको ऐसी घटना घटित होने का शंका आशंका तक नहीं हुआ। पाकिस्तान के शरहद पर होते हुए भी अब्दुल्ला सरकार क्या गहरी निंद में ही सोती हैं? क्या केंद्र सरकार की ही सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी हैं।
इस घटना के कारण विश्लेषण में अगर हम जायेंगे तो यह भी हैं कि, केंद्र सरकार सहित वैसे राज्य सरकार जो पड़ोसी देश, खासकर भारत विरोधी पड़ोसी देश हैं, उस समय ही सतर्क हो जाना चाहिए था, उस समय से जब भारत ने सैन्य कार्यवाई के साथ बांग्लादेश में उतरा। मारे जा रहे, प्रताड़ना झेल रहे वहां के हिन्दुओं के रक्षार्थ भारत की कार्यवायी कोई गलत कदम नहीं हैं। लेकिन पाकिस्तान को वह रास नहीं आया, जो सभी जानते हैं। केंद्र सरकार भी यह जानती हैं। सरहद से जुड़े राज्य सरकारें भी जानते हैं, बावजूद जम्मू कश्मीर की सरकार चेतनशून्य जैसी रही यह दुःखद पहलू हैं।