पं रबिशंकर मिश्रा के अनुसार इस बार रक्षा बंधन पर तीन शुभ योगो में बंधेगा रक्षा सूत्र
भारतीय अध्यात्म ने समाज को सुरक्षित रखने के लिए बहुत से अवसर और उपाय दिए हैं। इन्हीं में से एक है रक्षाबंधन पर्व। रविवार 22 तारीख को श्रावण मास की पूर्णिमा हैं। पं रबिशंकर मिश्रा ने बताया कि इसी दिन रक्षाबंधन मनाया जाता है। इस दिन प्रातः कालीन शोभन, मातंग, और सर्वाथ सिद्धि योग होने से श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा का यह पर्व पर इस वर्ष बहुत ही बढिया शुभ योग बन रहा है। मध्याह्न में विरश्चिक लग्न में दोपहर 12ः00 बजे से 2ं 12 बजे तक और कुंभ लग्न में सायंकाल 6ं 06 बजे से 7ः40 बजे तक का रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त हैं। 22 तारीख को प्रातः 6ः16 बजे तक भद्रा की उपस्थिति हैं। इस कारण प्रातः 6ः16 बजे तक बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र नही बांध सकेंगी।
पद्म पुराण में कई कथाऐ इस पर्व से जुड़ी हुई हैं। एक कथा विष्णु भगवान के वामन अवतार और राजा बली की भी है। इस कथा में वर्णन हैं कि इस अवतार में भगवान विष्णु राजा बली की कर्तव्यपरायणता से प्रसन्न होकर स्वेच्छा से उसके द्वारपाल बनकर पाताल लोक चले जाते हैं। तब माँ लक्ष्मी
राजा बली को श्रावण पूर्णिमा
को भाई के रुप में रक्षा सूत्र बांधती हैं। और अपने पति विष्णु को वापस लेकर आ जाती हैं। शिशुपाल का वध
करते समय कृष्ण भगवान की तर्जनी उँगली में चोट आ गई,तो द्रौपदी ने रक्त को रोकने के लिए साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर बांध दी थी। उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा था। पूजा में इस दिन बहन अपने भाई को पूर्व मुख करके बैठाती हैं। तथा अपने खुद पशिचम की ओर मुख कर जल शुद्धि करके अपने भाई को रोली और अक्षत का तिलक लगा कर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए रक्षा सूत्र बांधती है मंत्र येन बद्बो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चलः।। इसके बाद भाई की आरती उतर कर मिष्टान्न खिलाती हैं। इस दिन का एक और महत्वपूर्ण योग भी बनता हैं। छोटे बच्चों के लिए यह दिन विधारम्भ का भी माना जाता है।