सुचना के अधिकार को जन जागरुकता की जरूरत

सरकार ने सुचना के अधिकार अधिनियम को लागू कर जनता के हाथ में जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के कार्यों की समीक्षा का अधिकार दे दिया परंतु जब तक इस अधिनियम के प्रति जनता जागरूक नहीं होगी तब तक एक स्वस्थ और ईमानदार लोकतंत्र की कल्पना बेमानी है।

सूचना का अधिकार अधिनियम का संबंध मजबूत लोकतंत्र से है ज्योति मजबूत लोकतंत्र अपने नागरिकों से यह अपेक्षा करता है कि वो और सरकार के प्रतिनिधि क्या और कैसे कर रहे हैं इसकी जानकारी रखें सूचना का अधिकार अधिनियम इसी उद्देश्य की पूर्ति करता है।

आरटीआई कानून 2005 संसद द्वारा पारित है जिसको 12 अक्टूबर 2005 मे से पूरे भारत मे ( जम्मू और कश्मीर को छोड़कर) लागू किया गया था । भारत सरकार द्वारा इस कानून को लाने का मुख्य कारण यह था कि सरकार चाहती थी कि भ्रष्टाचार मुक्त शासन हो और आम लोगों को सरकारी अधिकारियो पर नजर रखने का अधिकार हो जिसके लिये तत्कालीन सरकार ने आरटीआई एक्ट 2005 को लागू किया।
इस अधिनियम के तहत भारत के हर नागरिक को किसी भी सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों से हर प्रकार के सरकारी दस्तावेज की जांच एवं उसकी प्रतिलिपि प्राप्त करने का अधिकार दिया गया परंतु अधिनियम के प्रचार प्रसार में कमी की वजह से इसकी जानकारी जन जन तक पहुंच नहीं सकी या ऐसा कहें सरकारी अधिकारियों ने जिनकी जवाबदेही इस कानून को लागू कराने में थी उन्होंने ही इसे कमजोर कर दिया हालांकि सरकार ने इसकी अवहेलना करने वाले अधिकारियों पर कठोर नियम लागू किये फिर भी हजारों संचिका अफसरों के पास दबी पडी है।

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