जब किसी नर्सिंग होम में मरीज़ की मौत होती है तो वहाँ के अधिकारियों द्वारा एक मात्र कारवाई की जाती है उस को बंद कर डॉक्टर के ऊपर एफ आई आर दर्ज करा कर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर लेना और पुलिस भी ऐसे मामलों को अपनी फाइलों में दर्ज कर अपने कर्तव्य का पालन करती है। शायद ही कोई मामला ऐसा हो जिसमे किसी दोषी को सजा मिली है। आखिर क्या वज़ह है कि खुलेआम नियमों को ताक पर रखकर सैकड़ों ऐसे नर्सिंग होम चलते रहते है। परंतु विभाग द्वारा हर हादसे के बाद कारवाई की जाती है परंतु कुछ दिनों बाद वही कहावत चरितार्थ होती है कि
” वही घोड़ा और वही मैदान “
अगर सूत्रों की बात का विश्वास करे तो जिला सिविल सर्जन कार्यालय में लंबे समय से जमे कर्मचारियों की बदौलत ये खेल चलता है। समय समय पर सिविल सर्जन कार्यालय द्वारा सभी चिकित्सा पदाधिकारियों को पत्र जारी कर अवैध की जाँच करने का पत्र निर्गत किया जाता है परन्तु शायद ही कोई पदाधिकारी द्वारा जाँच रिपोर्ट दी जाती हो ऐसी जानकारी कार्यालय से निकलकर बाहर आती हो।
आप अंदाजा लगा सकते है कि जिस सिविल सर्जन कार्यालय के निकले हुए पत्रों का जवाब उनके मातहत अधिकारी नहीं देते ऐसे सिविल सर्जन नामक पद पर बैठे पदाधिकारी का कार्यकाल कैसा होगा।
सूत्रों की बातों का विश्वास किया जाय तो लंबे समय से जमे कर्मियों द्वारा ही इस कार्यालय को चलाया जाता रहा है और सिविल सर्जन कार्यालय में भ्रस्टाचार की मुख्य वज़ह यही कर्मी है। इस कार्यालय के बारे कहा जा सकता है कि कितने अधिकारी आये और चले गये परंतु उनको चलाने वाले यही पड़े है।
आपको बता दे कि इस कार्यालय की स्थिति यह है कि मीडियाकर्मियों द्वारा एक बच्चा बेचने वाले गिरोह के सरगना को पकड़ा गया तो विभाग के जाँच दल के अधिकारियों की सरगना ने अपने रूम में भेज दिया और सभी जाँच दल के लोग उसके रूम में इंतजार करते रहे और बाद मे उन्हीं जाँच दल के लोगों ने उसकी फरार होने की रिपोर्ट पेश कर दी। इस बात से साफ़ साफ़ प्रतीत होता है कि ऐसे अवैध कार्यो को करने वालों की मिलीभगत विभाग के कर्मियों से है।