आवेदन को रोक कर क्या निजी फायदा किया सक्षम अधिकारी ने

आज भले ही नगर आयुक्त/महापौर पक्की फुलवारी के विवाद को सुलझाने में लगे है परंतु देखा जाय तो उक्त विवाद दोनों ही पदों पर रहे पूर्व के लोगों की देन है। और वर्तमान मे भी नगर आयुक्त भविष्य मे होने वाले ऐसे अनेक विवादों को पैदा करने का कार्य कर रहे है।

 

               आखिर किस लालच मे वर्तमान नगर आयुक्त दिन प्रतिदिन सैकड़ों ऐसे भवनों का निर्माण करने की खुली छूट दे रहे है। अगर मकान बनाते समय ही नगर निगम ये सुनिश्चित करे कि बनने वाला मकान या कॉलोनी की जल निकासी की व्यवस्था क्या है तो ऐसी नौबत ही नहीं  आती। परन्तु ना जाने किस लालच मे नगर निगम के आयुक्त ऐसे सभी बेतुके मकान बनने देते हैं जो कि पूरे नियमों के विरूद्ध है। 

        ”  हाँ नगर आयुक्त पंद्रह बीस और पच्चीस सालो पुर्व मकानों पर कारवाई की बात जरूर करते है इससे साफ़ पता चलता है कि कहीं ना कहीं अधिकारियों की ऐसी साजिश हो सकती है कि पुराने से भी कमाओ और नये से भी “

         अगर गरिमा देवी के कथनों का विचार करे तो आखिर किस लालच में नगर आयुक्त ने अतिक्रमण करने वालों के विरुद्ध दिए गये आवेदन को रोक कर अपना क्या निजी फायदा किया। क्या करोड़ों के जमीन पर अतिक्रमणकारियों द्वारा कब्जा बरकरार रखने के एवज़ में कहीं उन्होंने मोटी रकम  तो नहीं ली। यह जाँच का विषय है। क्यूँकी वर्तमान नगर आयुक्त पर पुर्व में भी सांसद से लेकर पार्षदों तक ने भ्रस्टाचार के आरोप लगाये है। आखिर इतने आरोपों के बाद भी पद पर बने रहना इस ओर इशारा करता है कि कहीं इनके भ्रस्टाचार की सीढ़ी में कितने बड़े लोगों का संरक्षण है। 

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