“अपनी सुुगन्ध और स्वाद के लिए के लिए विश्व प्रसिद्ध मरचा चूड़ा को आखिर मिल ही गया जी आई टैग । बिहार मे मुजफ्फरपुर की लीची , भागलपुर का जर्दालु आम और कतरनी चावल, मिथिला का मखाना और नवादा का मगही पान के बाद अपनी सुुगन्ध और स्वाद के लिए सुप्रसिद्ध मरचा धान को जी आई टैग मिलने की जानकारी आज जिलाधिकारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से प्रदान की। जिले मे इस धान के मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में चनपटिया, मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर एवं लौरिया शामिल हैं। इस अवसर पर अपर समाहर्त्ता, वरीय उप समाहर्ता डॉ० राज कुमार सिन्हा, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के कुलपति, वैज्ञानिक डॉ० एन० के० सिंह, डॉ० निलंजयडॉ0 पीरू कुमार तिवारी, जिला कृषि पदाधिकारी की पूरी टीम उपस्थित थी”
जिलाधिकारी ने बताया की पश्चिमी चम्पारण जिला के मरचा धान को वैश्विक पहचान दिलाने हेतु जिला प्रशासन द्वारा किये जा रहे लगातार प्रयास के फलस्वरूप जीआई टैग सर्टिफिकेट प्राप्त हो गया है। जी आई टैग किसी क्षेत्र के उत्पाद की उत्पत्ति को पहचानने के लिए एक संकेत या प्रतीक है इस GI टैग की मदद से कृषि, प्राकृतिक या निर्मित वस्तुओं की अच्छी गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जा सकता है। उन्होंने कहा की जिला प्रशासन और कृषि वीभाग की पूरी टीम आनंदी भूजा , जर्दा आम को भी अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने को हरसंभव प्रयास कर रही है। इस अवसर पर जिलाधिकारी ने “मरचा धान उत्पादक प्रगतिशील समूह” के सचिव व अन्य सदस्यों को फूलों के गुलदस्तों के साथ मंच पर स्वागत और सम्मानित किया । साथ ही उन्हे प्रमाण पत्र देकर इसकी गुणवत्ता बनाए रखने को भी कहा । जिलाधिकारी ने कहा की धान को जी आई टैग मिलने के बाद इसके उत्पादक किसानों की आर्थिक स्थिति मे सुधार भी होगा साथ ही उन्होंने यह भी कहा की इस बात का पूरा ख्याल रखा जाएगा की मिरचा धान के उत्पादकों का शोसन नया हो ।
” आपको बात दें की मर्चा धान’ बिहार के पश्चिम चंपारण में स्थानीय रूप से पाए जाने वाले चावल की एक विशेष सुगंधित किस्म है। इस धान की पहचान यह है की देखने मे यह धान काली मिर्च के रंग की तरह दिखाई देता है, इसलिए इसे मिर्चा या मर्चा राइस जैसे कई नाम से जाना जाता है। इसे स्थानीय स्तर पर मिर्चा, मर्चीया आदि नामों से भी जाना जाता है। मर्चा धान के पौधे और अनाज में एक अनूठी सुगंध होती है, जो इसे अलग एवं विशिष्ट पहचान स्थापित करता है। और इस धान की खेती विशेष क्षेत्र मे ही संभव है ”