सत्य अहिंसा की गाँधी नीति

राहुल कुमार के ब्लॉग से ✍️

आपको पता है स्वतंत्रता संग्राम में गाँधीजी के पास 2 ही हथियार थे एक सत्य और दूसरा अहिंसा।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है “सत्यमेव जयते ” अर्थात सत्य की ही जीत होती है। ऐसे में अगर आप सच के साथ हैं तो आपकी जीत निश्चित है। गाँधीजी ने भी यहीं समझाने की कोशिश की है। अगर आप सत्य के साथ हैं, तो आपको हिंसा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह दोनों हथियार सत्य और अहिंसा जंग लड़ने का एक सकारात्मक मार्ग है।
गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा को “सत्य के प्रयोग ” नाम दिया है। उन्होंने कहा है की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ने के लिए अपने दुष्टात्माओं, भय और असुरक्षा जैसे तत्वों पर विजय पाना है। बाद में उन्होंने इस कथन को “सत्य ही भगवान है” में बदल दिया।
गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा “द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ ” में अपने जीवन के मार्ग का वर्णन करते हुए लिखा है:
“जब मैं निराश होता हूँ तब याद करता हूँ कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है, किन्तु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहाँ अत्याचारी और हत्यारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय लगते थे किन्तु अंत में उनका पतन ही होता है – इसका सदैव विचार करें।
उन्होंने यह भी कहा था, “मैं मानता हूँ जहाँ डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में अपनी राय दूँगा। उन्होंने अपने सत्याग्रह आंदोलन में ऐसे लोगों को दूर ही रखा जो हथियार उठाने से डरते थे अथवा प्रतिरोध करने में स्वयं को अक्षमता का अनुभव करते थे।

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