जिले का ऐतिहासिक स्थल हैं सिद्ध पीठ पटजिरवा धाम जिसकी कहानी माता सीता एवं भगवान श्री राम से जुड़ी हुई हैं। जिला मुख्यालय बेतिया से पश्चिम बैरिया प्रखंड के उतरी पटजिरवा पंचायत के पूजहां गांव में नारायणी नदी के तट पर अवस्थित हैं सिद्धपीठ पटजिरवा महारानी का स्थान।
लेखक- अंकित कुमार मिश्र
स्वरुप:-पटजिरवा महारानी का स्वरुप प्रकृति स्वरूपिणी का है। तात्पर्य यह है कि दो पीपल पेड़ एक नर और दूसरा मादा है दोनों पेड़ के बीच आठ पिंड हैं, मान्यता है कि त्रेता युग में जब भगवान राम सहित उनके अन्य भाइयों की शादी जनकपुर में हो गई और अयोध्या के सम्राट दशरथ जी जनकपुर से वापसी बारात लेकर वापस आ रहे थे तो राजा जनक द्वारा बनाई गई बारात ठौर स्थल (नारायणी नदी के तट पर) पर दशरथ जी ने बारातियों के विश्राम के लिए यहां ठहराया। इस विश्राम काल में ही महर्षि वशिष्ठ एवं विश्वामित्र जी के परामर्श पर दशरथ महाराज ने महायज्ञ का आयोजन किया। महायज्ञ के यजमान बने प्रभु श्री राम एवं माता सीता। इन दोनों के द्वारा ही महर्षियों एवं विद्वान् पंडितों के द्वारा दोनों पीपल के जड़ को अंगीकार करते हुए दस महाविद्या का पिंड स्थापित किया गया। तब से अब तक पटजिरवा महारानी की पूजा आराधना पिंड रूप में की जाती रही हैं।
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पटजिरवा महारानी का संक्षिप्त इतिहास :- पटजिरवा महारानी का इतिहास सतयुग (सती युग), त्रेता एवं द्वापर युग से जुड़ा हुआ हैं। भूतभावन भगवान शिव जी की पहली पत्नी माता सती शिव जी के माना करने पर भी अपने मैके पिता प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में चली गई, जहां उनके पिता द्वारा भगवान शिव के प्रति काफी अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया, जिसे माता सती बरदाश्त नहीं कर सकी और उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया। दिव्य दृष्टि से महादेव ने यह दृश्य देखा, तत्क्षण वहां प्रकट हुये और माता सती के शव को कंधे पर रख कर उग्र रूप धारण कर लिया तथा सृष्टि के विनाश के लिए चल पड़े। उनके कोप दृष्टि से संसार को बचाने के लिए ऋषियों, महर्षियों, गंधर्वों यहां तक कि ब्रह्मा जी ने भी भगवान विष्णु से अनुरोध किया। भगवान विष्णु ने कहा कि शिव जी को इस हालत में रोक पाना मुश्किल हैं, वैसे मैं अपने सुदर्शन चक्र को आदेश देता हूं कि उनके कंधे से धीरे धीरे सती माता का शव काट कर गिरा दे। जब शव उनके शरीर से हट जायेगा तो वे आवक हो जाएंगे और अदृश्य रूप प्राप्त कर लेंगे। और ऐसा ही हुआ। ऐसी मान्यता है कि चक्र सुदर्शन ने माता सती का शरीर 51भागों में खंडित किया। बहुत सा भाग पृथ्वी, समुद्र सहित आकाश द्वीप में गिरा। माना जाता हैं कि गिरे हुए शरीर भाग की अभी भी खोज हो रही हैं। एक खंडित भाग का पेट भाग पटाना में गिरे होने की बात बताई जाती हैं, इसलिए सिद्धपीठ पटनदेवी कहा जाता हैं। पेट भाग गिरने से ही कालांतर में इस स्थान का नाम पटवा से जाना गया, जो बाद में पटवा से पटना हो गया। जहां जहां शरीर भाग गिरे होने की बात मानी गई है वह स्थान सिद्ध पीठ के रूप में ख्याति प्राप्त किया है। इसी प्रकार पटजिरवा में माता सती का दोनों पैर भाग गिरे होने की बात बताई जाती हैं। यहां पैर भाग गिरे होने के कारण इस स्थान का नाम कालांतर में पदगिरा पड़ा। त्रेता युग में जब जनक पुर से दशरथ जी अपने पुत्रों एवं पुत्रबधुओं के साथ वापसी बारात ले कर चले तो जनक जी द्वारा वापसी बारात के लिए अपने राज्य के अंतिम सीमा तक चार ठहराव स्थल बनाए गए थे। मिथिला राज्य के अंतिम पश्चिमी सीमा नारायणी नदी के तट पर स्थित पदगिरा स्थान पर बड़ा सा तालाब खुदवाकर ठहराव स्थल बनाया गया था। वापसी बारात बीच के सभी ठहराव स्थल पर रुकती ,विश्राम करती हुई आगे बढ़ रही थी, लेकिन किसी भी स्थान पर माता सीता ने विश्राम नहीं किया। वह डोली में ही बैठी रही, लेकिन जब वापसी बारात पदगिरा स्थान पहुंची तो माता सीता ने अपने डोली का पट खोल कर अपने अनुचारियों से यहां विश्राम करने की इच्छा जाहिर की। उनके द्वारा डोली का पट खोले जाने तथा विश्राम करने की बात जंगल की आग तरह बारातियों सहित अगल बगल के गांवों में फैल गई। चूकि इसके पहले के तीन पड़ावों पर उन्होंने डोली का पट तक नहीं खोला था और यहीं पर उन्होंने डोली का पट खोला। इस कारण इस स्थान का नाम पदगिरा से पट खुला पड़ गया। ऐसा माना जाता हैं कि त्रेता युग में भगवान श्री कृष्ण ने इस स्थान पर मां भगवती की आराधना की थी। कलयुग काल पटजिरवा महारानी का आराधना काल ही है, जो अपने भक्तों को मनवांछित फल प्रदान करती हैं। कहा जाता हैं कि सैकड़ों वर्ष पूर्व नेपाल के एक नरेश जिन्हें कोई संतान नहीं था। रानी गर्भ धारण तो करती थी, लेकिन नुकसान हो जाता था। विद्वान विप्रजानो के परामर्श से रानी के गर्भ धारण करने पर इसी स्थान पर रानी ने गर्भ निस्तारण तक आवासन किया तथा लागतार पंडितों द्वारा पटखुला माता की पूजा अर्चना करते रहे। भगवती की कृपा से नेपाल की रानी को जीवित पुत्र पैदा हुआ। नेपाल नरेश ने बहुत बड़ा यहां यज्ञ किया। अनुचारियों सेविकाओं द्वारा मंगलगान में पटखुला में राजा के पुत्र जियले गाती थी। नतीजतन बाद में इस स्थान का नाम पटखुला से पटजिरवा पड़ गया।
बेतिया पद्मनगर के निवासी एवं पटजिरवा में स्थित केदार पांडेय प्रोजेक्ट कन्या+2विधालय के सेवानिवृत प्राचार्य सुनील दत्त द्विवेदी उर्फ़ सुनील दुबे ने पटजिरवा महारानी पर एक प्रकार से शोध पुस्तक ‘सिद्ध पीठ पटजिरवा धाम “लिखा है। जिसमें विस्तृत इतिहास वर्णित हैं। लेखक सुनील दुबे ने तर्कों एवं उपस्थित साक्ष के आधार पर स्पष्ट किया है कि यह स्थान बुद्ध काल में बौद्ध भिक्षुओं से भी जुड़ रहा है। कालांतर में बौद्ध भिक्षुओं को प्रशिक्षित करने वाला यह केंद्र हुआ करता था। यह स्थान बौद्ध भिक्षुओं के चक्राधिपति स्थान के रूप में भी कार्यरत रहा है। सिद्ध पीठ पटजिरवा धाम पुस्तक में लेखक सुनील दुबे ने उल्लेख किया है कि सम्राट अशोक ने जब चंपारण के रामपुरवा, लौरिया, अरेराज- लौरिया में स्तंभ स्थापित कराया, उसी क्रम में पटजिरवा महारानी दरबार के पीछे राजा जनक द्वारा खुदवाई गई तालाब के तट पर लौह स्तंभ स्थापित किया था। जो 2003 तक सबूत था। जब इसी वर्ष नारायणी नदी में भीषण बाढ़ आई तो उसी अफरा तफरी काल में चोरों ने उसे चुरा लिया। सुनील दुबे ने सिद्धपीठ पटजिरवा धाम पुस्तक के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी लिखी हैं. श्री दुबे एक वरिष्ठ पत्रकार, एवं स्तंभकार भी हैं। इन्होंने विद्यालय सेवा कल में विद्यालय का प्रोस्पेक्टस जारी किया, जिसमें स्थानीय इतिहास लिखा। जिसमें बड़े ही तार्किक ढंग से भगवान श्री राम एवं माता सीता के बाद वापसी बारात की चर्चा की हैं उन्होंने बताया हैं कि दशरथ महाराज जी ने एक सप्ताह से अधिक दिनों तक यहां पूजा पाठ कराया इसलिए ही इस जगह का नाम कालांतर में यहां पूजा हुआ से पूजाहां पड़ा। जहां सैनिकों एवं बारातियों का गाड़ी घोड़ा का ठहराव स्थल बनाया गया, उस जगह का नाम घोड़हिया पड़ा, दशरथ जी सहित अन्य लोगों का जहां रथ ठहरा उस स्थान का नाम रथ ठहरा से रनहा पड़ गया। जहां दशरथ जी ने अपने कुल देव सूर्य भगवान की आराधना की, उस स्थान का नाम सूर्यपुर पड़ गया। जहां भगवान श्री राम का ठहराव स्थल बना उस स्थान का नाम श्री नगर पड़ गया l जहां माता सीता की बहने एवं अनुचारियों द्वारा मंगल गान गया उस स्थान का नाम मंगल पुर पड़ गया। जो आज भी उन नामों के द्वारा ही उन स्थानों का सम्बोधन होता हैं। सुनील दुबे जी का तर्क और वर्तमान संबोधन साक्ष्य अकाट्य हैं। श्री दुबे के द्वार पटजिरवा महारानी बहुयामी प्रचार प्रसार भी मीडिया एवं विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से किया गया हैं।
मां पटजिरवा महारानी का महत्व:- पटजिरवा महारानी की ख्याति दूर दूर तक फैली हुई हैं l देश के कोने कोने सहित पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालु भक्त यहां आते रहते हैं l भक्तों की हर मनोकामना पूरा करने वाली यह माता हैं l चैत्र नवरात्रि एवं आश्विन मास की नवरात्रि में यहां बड़े पैमाने पर मेला लगता हैं l लाखों की संख्या में भक्त गण आते हैं l यह भी मना जा रहा हैं कि त्रेता युग में राजा दशरथ ने यहां सप्त दिवसीय दस महाविद्या पिण्ड स्थापना के लिए प्राण प्रतिष्ठा महायज्ञ किया था, उसके बाद यहां जन सहयोग से शिव मंदिर का निर्माण हुआ, लगभग 2006 में आठ – दस गांवों के सहयोग से शिव मंदिर में स्थापित होने वाले देवी देवताओं के निमित प्राण प्रतिष्ठा महायज्ञ ग्रामीणों ने किया। 2022में स्थानीय+2 कन्या विधालय के प्राचार्य सुनील दत्त द्विवेदी उर्फ़ सुनील दुबे की धर्म पत्नी श्री मति प्रभा द्विवेदी ने माता पार्वती जी की मंदिर बनवा कर बड़े ही व्यापक रूप में पंच दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा महायज्ञ किया। सुनील दुबे के द्वारा पुनः 2023में में महायज्ञ किया गया । उसके बाद से ही स्थानीय ग्रामीणों, श्रद्धालुओं एवं भक्तों द्वारा इस स्थान को “सिद्ध पीठ पटजिरवा धाम”के रूप में घोषित किया गया। वास्तव । में यह स्थान धाम के रूप में ख्याति मार्ग पर अग्रसर हैं।वही 2024में सुनील दुबे के नेतृत में स्थानीय माता दरबार के भक्त नंदू महतो, अशोक महतो, पवहारी मुखिया, नगीन चौधरी, दीपलाल चौधरी आदि केअथक प्रयास एवं समीपवर्ती गांवों के लोगों के सहयोग से नौ दिवसीय महायज्ञ का आयोजन किया गया l इस धाम के विकास के लिए सिद्ध पीठ पटजिरवा देवी स्थान विकास समिति के अध्यक्ष दारोगा पटेल जो स्थानीय गांव के निवासी हैं, इस स्थान के विकास के लिए सदैव तत्पर रहते हैं l
वहीं समाज समिति के अध्यक्ष नगीना चौधरी, पूजा समिति अध्यक्ष अरुण साह, नंदू महतो, संजीव कुमार आदि दरबार के सेवकों का प्रयत्नशीलता देखने को मिलती हैं।
सरकार की सुविधा :- बिहार सरकार के पर्यटन विभाग के द्वारा यात्रियों -मेलार्थियों के ठहरने, पूजा -यज्ञ आदि करने के लिए बहुत ही सुंदर और आकर्षक भवन का निर्माण कराया गया है। स्थानीय (नौतन) विधायक एवं तत्कालीन बिहार सरकार के पर्यटन मंत्री नारायणन प्रसाद के प्रयास से पटजिरवा महारानी का प्रांगण सहित भवन तैयार किया गया है। सिद्ध पीठ पटजिरवा देवी स्थान विकास समिति के अध्यक्ष दारोगा पटेल ने ज्ञापन एवं अन्य विभिन्न माध्यमों से सरकार से मांग किया हैं कि, सिद्धपीठ पटजिरवा धाम को पर्यटक स्थल घोषित किया तथा इस स्थान की महता_माता जानकी ( सीता माता) से जुड़ा हुआ हैं, इसलिए प्रत्येक वर्ष के वैशाख शुक्ल पक्ष नवमी (जानकी नवमी) को पटजिरवा महोत्सव का आयोजन सरकारी स्तर पर_किया जाय।